असम.समाचार(स्पेशल)

प्लास्टिक के दौर में भी ज़िंदा है माटी की खुशबू ,सोनितपुर के मुशाफिर पंडित ने संजोयी कुम्हारी कला की विरासत

हरेन भूमिज

बारजुली (सोनितपुर)15 जुलाई

आधुनिकता और प्लास्टिक के बढ़ते प्रचलन के इस युग में भी सोनितपुर ज़िले के बारजुली गांव के 70 वर्षीय मुशाफिर पंडित ने परंपरागत कुम्हारी कला को जीवित रखा है। पिछले 50 वर्षों से माटी के घड़े, दीये, कुल्हड़, फूलदान और अन्य हस्तनिर्मित वस्तुएँ बनाकर न केवल अपना जीवनयापन कर रहे हैं, बल्कि एक सांस्कृतिक विरासत को भी अगली पीढ़ियों तक पहुँचा रहे हैं।

मुशाफिर पंडित का यह सफर बचपन में उनके पिता से प्रशिक्षण लेकर शुरू हुआ था। उस समय गाँवों में मिट्टी के बर्तन पानी रखने, खाना पकाने और परोसने के लिए आमतौर पर उपयोग में लाए जाते थे। समय बदला, प्लास्टिक का बोलबाला बढ़ा, परंतु मुशाफिर पंडित ने कभी अपनी माटी से नाता नहीं तोड़ा।

आज उनके हाथों से बनी वस्तुएँ न सिर्फ सोनितपुर, बल्कि बिश्वनाथ, नागांव और यहां तक कि अरुणाचल प्रदेश के बाजारों तक पहुँच रही हैं। खास बात यह है कि मिट्टी के बर्तन न केवल परंपरा का प्रतीक हैं, बल्कि स्वास्थ्य की दृष्टि से भी लाभकारी माने जाते हैं, ये पानी को ठंडा रखते हैं और भोजन का स्वाद व पौष्टिकता भी बढ़ाते हैं।

अब इस कारीगरी में उनका बेटा भीम कुमार भी कंधे से कंधा मिलाकर जुड़ गया है। आईटीआई छात्र और हायर सेकेंडरी पास भीम कुमार ने न सिर्फ अपने पिता का हाथ बंटाना शुरू किया है, बल्कि युवाओं को भी इस शिल्प से जोड़ने का प्रयास कर रहा है।

सरकार जहाँ एक ओर प्लास्टिक उपयोग को कम करने की अपील कर रही है, वहीं दूसरी ओर मुशाफिर पंडित जैसे माटी के सच्चे सिपाही बिना शोर किए पर्यावरण, परंपरा और संस्कृति की रक्षा कर रहे हैं।

 

Related Articles

Back to top button
error: Content is protected !!