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असम कृषि विश्वविद्यालय की स्वर्णिम उपलब्धियां: 55 वर्षों में कृषि विकास की नई इबारत

दीपक मुख्तियार

जोरहाट, 30 जुलाई /असम समाचार

भारत के उत्तर-पूर्वी राज्य असम की हरित-श्यामला धरती कृषि पर गहराई से निर्भर है। राज्य की लगभग 70% आबादी की आजीविका का आधार कृषि है, और इस क्षेत्र को सशक्त बनाने में असम कृषि विश्वविद्यालय (AAU), जोरहाट की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही है। वर्ष 1969 में स्थापित यह विश्वविद्यालय शिक्षा, अनुसंधान और विस्तार के माध्यम से किसानों के जीवन में निरंतर बदलाव ला रहा है।

असम में हरित क्रांति का प्रभाव भले ही देर से आया हो, परंतु नब्बे के दशक में विकसित धान की “रंजीत” किस्म ने राज्य के कृषि परिदृश्य को बदल कर रख दिया। यह किस्म आज भी खाद्य सुरक्षा में अहम भूमिका निभा रही है, जिसकी बाजार हिस्सेदारी लगभग 3600 करोड़ रुपये आंकी गई है।

किस्मों का विकास और नई ऊँचाइयाँ

असम कृषि विश्वविद्यालय ने बीते पांच वर्षों में धान, सरसों, तिल, बैंगन, नारियल, मगुमाह, माटिमाह, मटरमाह जैसी फसलों की 24 उन्नत किस्में विकसित की हैं। यह संख्या विश्वविद्यालय के पिछले 50 वर्षों की 16 किस्मों की तुलना में उल्लेखनीय वृद्धि को दर्शाती है। इसके अतिरिक्त, देश के अन्य राज्यों में विकसित किस्मों को भी असम के किसानों के लिए अनुमोदित किया गया है।

भौगोलिक संकेत (GI) और परंपराओं को पहचान

विश्वविद्यालय के सतत प्रयासों के चलते जोहा चावल, काजी निम्बू, गमोचा, जुडिमा (स्थानीय मदिरा), और चकौवा चावल को भौगोलिक संकेत (GI) प्राप्त हो चुके हैं। इसी कड़ी में अरुणाचल प्रदेश के मोनपा गोमधान और जनजातीय समुदायों के पारंपरिक वस्त्रों को GI टैग दिलाने के प्रयास जारी हैं।

प्रौद्योगिकियों में नवाचार और पेटेंट उपलब्धियाँ

पिछले पांच वर्षों में विश्वविद्यालय ने मगुमाह बीज संरक्षण, चायपत्ती सुखाने की मशीन, तरलीकृत लाभकारी फफूंद, और जैविक कीटनाशक निर्माण जैसी चार तकनीकों के लिए पेटेंट प्राप्त किए हैं। साथ ही, 11 अन्य नवाचारों के लिए पेटेंट आवेदन प्रक्रियाधीन हैं, जिनमें काजी निम्बू का रस संरक्षण और चुङ्गा चावल निर्माण उपकरण प्रमुख हैं।

जैविक कृषि को बढ़ावा

जैविक और प्राकृतिक कृषि के क्षेत्र में भी विश्वविद्यालय अग्रणी रहा है। रोग और कीट-प्रबंधन के लिए बायोवीर, बायोगार्ड, बायोचना और बायोशक्ति जैसे जैविक कीटनाशकों का विकास किया गया है। इन उत्पादों को किसानों तक पहुंचाने के लिए विभिन्न संस्थानों के साथ समझौते किए गए हैं। इसके अलावा, जैविक कृषि के लिए ‘बरलिया पोक’ के टोप (ल्यूअर) का निर्माण और वितरण भी उल्लेखनीय रहा है।

राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग

विश्वविद्यालय ने वैश्विक और राष्ट्रीय स्तर पर अपने अनुसंधान और तकनीकी विकास को विस्तार देने के लिए अनेक प्रतिष्ठित संस्थानों जैसे नॉर्वे के NIBIO, जर्मनी के GIZ, फिलीपींस के IRRI, UN World Food Programme, ICRISAT, ICAR, और MS स्वामीनाथन अनुसंधान संस्थान के साथ साझेदारी की है। वहीं औद्योगिक क्षेत्र में गोडरेज एग्रोवेट, रिलायंस इंडस्ट्रीज, धनुका एग्रिटेक और टेरी जैसे संगठनों से भी समझौता ज्ञापन किए गए हैं।

निष्कर्ष

पचपन वर्षों की यह विकास यात्रा न केवल असम बल्कि पूरे उत्तर-पूर्व भारत के कृषि क्षेत्र के लिए प्रेरणादायक है। असम कृषि विश्वविद्यालय की पहलें कृषि की नवसंभावनाओं को साकार करने की दिशा में एक मजबूत कदम हैं, जो राज्य को आत्मनिर्भरता और सतत कृषि की राह पर अग्रसर कर रही हैं।

 

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