लेटेस्ट खबरें

तेजपुर विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं को चिकित्सा एवं स्वास्थ्य के क्षेत्र मे महत्वपूर्ण उपलब्धि

टीबी का पता लगाने के लिए स्मार्टफोन का उपयोग कर कम लागत वाला उपकरण विकसित किया। ग्रामीण क्षेत्रों के लिए प्रभावी साबित हो सकता है यह आविष्कार, कुलपति प्रो शंभूनाथ सिंह

 

जयप्रकाश अग्रवाल

तेजपुर 29 जुलाई/असम.समाचार

 

तेजपुर विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं की एक टीम ने स्मार्टफोन का उपयोग करके क्षय रोग (टीबी) का पता लगाने के लिए एक किफायती और पोर्टेबल उपकरण विकसित किया है। भौतिकी विभाग के प्रो. पवित्र नाथ और उनकी टीम द्वारा विकसित यह नया उपकरण विशेष रूप से ग्रामीण और दूरदराज के इलाकों में उपयोग के लिए डिज़ाइन किया गया है जहाँ उन्नत चिकित्सा सुविधाएँ आसानी से उपलब्ध नहीं हैं।


यह नया उपकरण इसलिए विशिष्ट है क्योंकि इसमें किसी रसायन या रंग की आवश्यकता नहीं होती है और यह टीबी बैक्टीरिया की प्राकृतिक चमक (ऑटोफ्लोरेसेंस) का उपयोग करके पता लगाता है। परीक्षण की सटीकता में सुधार के लिए इस उपकरण में एक अंतर्निहित हीटिंग सिस्टम है जिसे स्मार्टफोन का उपयोग करके संचालित किया जा सकता है। इस चमत्कारी आविष्कार की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह लागत प्रभावी है क्योंकि इसकी कीमत ₹25,000 से कम है और इसका वजन 300 ग्राम से भी कम है, इसलिए इसे आसानी कही भी लाया ले जाया जा सकता है। और इसे सीमित स्वास्थ्य सेवा साधारण बुनियादी ढांचे वाले स्थानों पर व्यवहार उपयुक्त बनाया गया है। वर्तमान में, टीबी भारत में एक प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है। इसके प्रसार को रोकने के लिए शीघ्र और सटीक निदान अति आवश्यक है। विश्व स्वास्थ्य संगठन और भारत के राष्ट्रीय टीबी उन्मूलन कार्यक्रम वर्तमान में टीबी स्क्रीनिंग के लिए एलईडी फ्लोरोसेंस माइक्रोस्कोपी को स्वर्ण मानक के रूप मे व्यवहार करता है साथ ही विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा अनुशंसित मानक परीक्षण पद्धति के लिए महंगी मशीनों और प्रशिक्षित तकनीशियनों की आवश्यकता होती है जो देश के विभिन्न प्रांतों मे खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में उपलब्ध नही हो पाती है। मगर तेजपुर विश्वविद्यालय के द्वारा चिकित्सा स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए विकशित नया उपकरण टीबी परीक्षण को सरल और अधिक सुलभ बनाकर इस समस्या का समाधान करने की दिशा मे वरदान साबित हो सकता है। इस आविष्कार के सम्बन्ध मे तेजपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफ़ेसर संभू नाथ सिंह ने कहा की “हालांकि एलईडी-एफएम पारंपरिक ऑप्टिकल माइक्रोस्कोपी की तुलना में अधिक संवेदनशीलता प्रदान करता है, लेकिन इसमें कई कमियां हैं। यह महंगे उपकरणों, ऑरामाइन-ओ जैसे रासायनिक अभिरंजन एजेंटों और नमूना तैयार करने और व्याख्या के लिए संचालन करने वाले प्रशिक्षित कर्मियों पर निर्भर करता है। इसके अलावा, प्रयोगशाला के बुनियादी ढांचे पर इसकी निर्भरता इसे कई ग्रामीण क्षेत्रों में अव्यावहारिक बनाती है। उन्होंने बताया की विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा विकसित यह उपकरण ऑटोफ्लोरोसेंस के सिद्धांत के अंतर्गत विकसित किया गया है जो माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस (एमटीबी) कोशिकाओं सहित कुछ सूक्ष्मजीव कोशिकाओं का एक प्राकृतिक गुण है जो प्रकाश की विशिष्ट तरंग दैर्ध्य से उत्तेजित होने पर फ्लोरोसेंस संकेत उत्सर्जित करते हैं। टीम का प्रमुख नवाचार सेंसर सिस्टम के भीतर एक हीटिंग तत्व के एकीकरण में निहित है। बैक्टीरिया के नमूने का तापमान बढ़ाकर यह प्रणाली एमटीबी कोशिकाओं से प्राकृतिक प्रतिदीप्ति संकेत को बढ़ाती है, जिससे दाग या रंगों के उपयोग के बिना ट्रेस-स्तर का पता लगाना संभव हो जाता है। उन्होंने कहा शोध दल में भौतिकी विभाग के शोध विद्वान बिप्रव छेत्री, चुनुरंजन दत्ता, डॉ. जे. पी. सैकिया, आणविक जीव विज्ञान और जैव प्रौद्योगिकी विभाग के शांतनु गोस्वामी और लैबडिग इनोवेशन एंड सिस्टम्स प्राइवेट लिमिटेड के अभिजीत गोगोई शामिल हैं। टीम ने पहले ही इस उपकरण के लिए एक पेटेंट (भारतीय पेटेंट आवेदन संख्या 202431035472) दायर कर दिया है। और उनके निष्कर्ष अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका बायोसेंसर्स एंड बायोइलेक्ट्रॉनिक्स में प्रकाशित हुए हैं। इस महत्वपूर्ण आविष्कार के लिए विशेषज्ञों की टीम को बधाई देते हुए, विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर शंभू नाथ सिंह ने कहा कि इस नवाचार में टीबी के खिलाफ लड़ाई में, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में, बड़ा प्रभाव डालने की क्षमता है। और आने वाले समय मे अति प्रभावी होगा यह आविष्कार।

Back to top button
error: Content is protected !!